Tuesday, May 22, 2018

जानिए, महान समाजसुधारक राजा राममोहन राय के जीवन से जुड़े अनछुए पहलू से




डेस्क। ब्रह्म समाज के संस्थापक,भारतीय प्रेस के जनक, भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत और आधुनिक भारत के जनक राजा राममोहन राय का जन्म ब्राह्मण परिवार में 22 मई 1772 को हुगली जिले के राधानगर गांव में हुआ। इनके पिता का नाम रामकांत राय और माता का नाम तारिणी देवी था।


इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर बंगला भाषा में हुई। पटना में उन्होंने अरबी व फारसी की उच्च शिक्षा प्राप्त करके काशी में संस्कृत का अध्ययन किया. उन्होंने अंग्रेजी भी मन लगा कर पढ़ी. वेदांत और उपनिषदों के प्रभाव से इनका दृष्टिकोण उदारवादी था।


इन्होने तिब्बत जाकर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। लौटने पर विवाह होने के बाद पारिवारिक निर्वाह के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क के पद पर नौकरी कर ली।  नौकरी के समय अंग्रेजी, लैटिन और ग्रीक भाषाओ का ज्ञान प्राप्त किया। 40 वर्ष की उम्र में नौकरी छोड़कर कोलकाता में रहकर समाज सेवा कार्य में लग गये. इस दिशा में इन्होने सती-प्रथा का विरोध, अन्धविश्वासो का विरोध, बहु-विवाह विरोध और जाति प्रथा का विरोध किया. विधवाओ के पुनर्विवाह और पुत्रियों को पिता की संपत्ति दिलवाने की दिशा में कार्य किया।

पत्रकारिता
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन', 'संवाद कौमुदी', मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। उनके जुझारू और सशक्त व्यक्तित्व का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अँग्रेज जज द्वारा एक भारतीय प्रतापनारायण दास को कोड़े लगाने की सजा दी गई। फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। इस बर्बरता के खिलाफ राय ने एक लेख लिखा।

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