Saturday, May 5, 2018

1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में पदक दिलाने वाले खाशाबा जाधव का जीवन परिचय #Introduction to life of Khashaba Jadhav Jadhav

केडी जाधव
स्वतंत्र भारत में व्यक्तिगत तौर पर ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी थे केडी जाधव। 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में जाधव ने फ़्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक हासिल किया था। खाशाबा जाधव का जन्म सतारा ज़िला, महाराष्ट्र में कराड तहसील के गोलेश्वर गाँव में मराठा परिवार में 15 जनवरी 1926 को हुआ था। इनकी माँ का नाम 'पुतलीबाई' था और उनके पिता को सभी 'दादासाहब' कहते थे। खाशाबा सभी भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनका काम खेती करना था। उनके पिता खेती के काम के साथ वे कुश्ती भी खेलते थे। खाशाबा के गुरु उनके पिता ही थे। उनकी शिक्षा तिलक हाईस्कूल, कराड़ (महाराष्ट्र) में हुई।  जिसमे उन्होंने कुश्ती, कबड्डी, दौड़ तैरने व जिमनास्टिक के अच्छे खिलाड़ी रहे। राजाराम कालेज, कोल्हापुर में ग्रेजुएशन करते-करते वह पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्धि पा चुके थे।  1948 में उन्होंने राष्ट्रीय फ़्लाइवेट चैंपियन बंगाल के निरंजन दास को लखनऊ में हरा दिया और राष्ट्रीय चैंपियन बन गए। इसी लिए उन्हें लंदन ओलंपिक (1948) के लिए चुना गया | वहां उन्होंने छठा स्थान प्राप्त किया। 

आर्थिक समस्या
खाशाबा को 'पॉकेट डायनमो' के नाम से भी बुलाया जाता है।  देश को ओलिंपिक मेडल दिलाने वाला ये हीरो गुमनाम बन कर ही रह गया।  देश के लिए खेलने के लिए जब उन्हें आर्थिक सहायता की जरूरत थी, तब सरकार ने ही उनसे पल्ला झाड़ लिया।  खाशाबा जाधव ने सबसे पहली बार ओलम्पिक में 1948 में हिस्सा लिया था। कोल्हापुर के महाराजा ने उनकी लंदन यात्रा का खर्चा उठाया। तब वे कोई विजयी प्रदर्शन नहीं कर सके। 1952 हेलसिंकी जाना उनके लिए आसान बात नहीं थी। वे क्वालिफ़ाई तो कर चुके थे, लेकिन वहां पहुंचने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। खाशाबा ने हेलसिंकी जाने के लिए सरकार से मदद मांगी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनसे पल्ला झाड़ लिया। सरकार ने कहा- "जब खेल खत्म हो जाएं, तब वे उनसे आ कर मिलें।"
हेलसिंकी, फ़िनलैण्ड में जाने के लिए खाशाबा के सामने पैसों की समस्या उत्पन्न हुई, 'राजाराम महाविद्यालय' के प्राचार्य दाभोलकर ने अपना बंगला गिरवी रखकर चार हजार रुपयों की मदद की, खाशाबा को कुल 12 हजार रुपयों की आवश्यकता थी, परंतु भारत सरकार ने खाशाबा के दुबले -पतले शरीर को देखते हुए आर्थिक मदद करने से इनकार कर दिया। खाशाबा ने रसीद बुक छपाकर 1 रुपए से चंदा जमा किया, उसी प्रकार एक सहकारी बैंक से कर्ज लेकर पैसे इकट्ठे किए।

भारत छोड़ो अभियान में भी सहयोग प्रदान किया था जाधव ने
खाशाबा जाधव कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के महान रेस्टलर (कुश्ती खिलाड़ी) तो थे ही, इन्होने 1942 के " भारत छोड़ो अभियान " में भी अपना योगदान प्रदान किया था।  इन्होंने सन् 1952 में " हेलसिंकी " ऑलम्पिक में कुश्ती स्पर्धा में भारत को कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा।  व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत को यह पहला मैडल मिला। 
पुलिस में सेवा 
1955 में पुलिस में " सब-इंस्पेक्टर " के पद पर नियुक्त किये गये।  उन्होंने पुलिस में तकरीबन 27 साल तक सेवा की।  आखिर में वे असिस्टेंट -पुलिस कमिश्नर के पद से मुंबई में रिटायर्ड हुए। ऐसे भारत माँ के महान सपूत जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया , इतना ही नहीं पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा की और साथ ही देश को पहला ब्रॉन्ज मैडल हासिल करके भारत का सर विश्व में ऊँचा किया, यह देश के लिए गौरव की बात है। 
पुरस्कार व सम्मान
1983 में फाय फाउंडेशन ने उनको " जीवन गौरव " पुरस्कार से सम्मानित किया। 1990 में इन्हें मेघनाथ नागेश्वर अवार्ड से (मरणोपरांत) नवाजा गया।  शिव छत्रपति पुरस्कार से वे 1993 में (मरणोपरांत) नवाजे गए ! 

निधन 
14 अगस्त 1984 को एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई।

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