नैन सिंह रावत का जन्म 21 अक्टूबर 1830 में पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील स्थित उत्तराखंड के सुदूरवर्ती मिलम गांव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम अमर सिंह था जिन्हें कि लोग लाटा बुढ्ढा के नाम से भी पुकारते थे। पहाड में लाटा अत्यधिक सीधे इन्सान अथवा भोले लोगों को मजाक में कहते हैं।
उनकी प्रारभिक शिक्षा गांव में ही हुई। उनके पिता भारत-तिब्बत के बीच होने वाले पारंपरिक व्यापार से जुड़े हुए थे। बड़े होने पर वे भी अपने पिता के साथ इसी काम में हाथ जुटाने लगे। इससे उनकी तिब्बत के रीति-रिवाजों और विभिन्न स्थानों की जानकारी पुख्ता हो गयी थी और वे तिब्बती भाषा समझने-बोलने भी लगे थे। उनके इसी ज्ञान (knowledge) ने भविष्य (future) में उन्हें जासूस सर्वेक्षर और मानचित्रकार के रूप में सफल बनाया
शिक्षक के पद पर (1858-1863)
वहां से लौटने के बाद नैन सिंह अपने गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप पर कार्य करने लगे। बाद में हेडमास्टर के पद पर उनकी पदोन्नती हई। उनके नाम के साथ अब पंडित पंडित शब्द जुड़ गया क्योंकि उस समय शिक्षक अथवा ज्ञानी लोगों को पंडित कहने का रिवाज था।
ग्रेट त्रिकोणमितीय सर्वे (1863-1875)
पंडित नैन सिंह और उनके भाई मणि सिंह को तत्कालीन शिक्षा अधिकारी एडमंड स्मिथ की सिफारिश पर कैप्टन थामस जार्ज मोंटेगोमेरी ने जीटीएस के तहत मध्य एशिया की जानकारी के लिए चयनित किया था। उनका वेतन मात्र 20 रुपये प्रतिमाह था।
पंडित नैन सिंह और उनके भाई मणि सिंह को तत्कालीन शिक्षा अधिकारी एडमंड स्मिथ की सिफारिश पर कैप्टन थामस जार्ज मोंटेगोमेरी ने जीटीएस के तहत मध्य एशिया की जानकारी के लिए चयनित किया था। उनका वेतन मात्र 20 रुपये प्रतिमाह था।
उनके महत्वपूर्ण कार्य
एशिया के मानचित्र तैयार करने में उनका योगदान सर्वोपरि है।
ब्रिटिश सरकार ने 1877 में उन्हें भारतीय साम्राज्य का साथी यानि सीआईई की उपाधि से नवाजा।
रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी ने उन्हें स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया था।
भारतीय डाक ने 27 जून 2004 को उन पर डाक टिकट निकाला था।
21 अक्टूबर 2017 को Google ने नैन सिंह रावत के 187 वें जन्मदिन को Google डूडल के साथ मनाया।

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