Monday, May 7, 2018

20 वर्ष की आयु में देश के लिए शहीद हो गए थे कन्हाई लाल#At the age of 20, the country was martyred for Kanhai Lal

कन्हाई लाल दत्त 

जन्म तथा शिक्षा
कन्हाई लाल दत्त का जन्म जन्माष्टमी की कालीअधेरी रात में 30 अगस्त, 1888 ई. को ब्रिटिश कालीन बंगाल के हुगली ज़िले में चंद्रनगर में हुआ था। कदाचित इसी से उनका नाम कन्हाई पड़ा हो।   पांच वर्ष की उम्र में कनाईलाल मुंबई आ गए और वहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई। बाद में वापस चंद्रनगर जाकर उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसी कालेज के एक प्राध्यापक चारु चन्द्र राय से गहनता के कारण कन्हाई को क्रान्ति पथ का परिचय प्राप्त हुआ था। लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली।
गिरफ़्तारी
खुदीराम बोस द्वारा किये गये मुजफ्फरपुर बम काण्ड के उपरान्त अंग्रेजी राज्य की रातों की नीद हराम हो गयी थी। सारा अंग्रेजी शासन चौकन्ना हो हो गया था। चारो ओर संदिग्ध लोगो की खोज आरम्भ कर दी गयी थी। खूब दौड़-धूप के बाद पुलिस को पता चला कि इन क्रान्तिकारियो का अड्डा मानिकतल्ला के एक बगीचे में है। यह बगीचा अरविन्द घोष के भाई सिविल सर्जन डाक्टर वारीन्द्र घोष का था। गुप्तचर विभाग वह से क्रान्तिकारियो की गतिविधि पर दृष्टि रखने लगे। दुर्भाग्य से क्रान्तिकारियो गुप्तचर विभाग की इस कारस्तानी से सर्वथा अनभिज्ञ रहे। इसका परिणाम क्रान्तिकारियो के लिए भारी संकटकारी साबित हुआ। गुप्तचर विभाग को इससे सफलता मिली और उसने देश के सर्वप्रथम बम षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दिया। इसमें बगीचे के मालिक वारींद्र घोष उनके भाई अरविन्द घोष , नलिनी कन्हाई लाल दत्त समेत लगभग 35 देशभक्त लोगो को बन्दी बनाने में पुलिस सफल हो गयी।
इन सब बन्दियो को अलीपुर कारागार में रखा गया था और वही पर इन क्रान्तिकारियो पर अभियोग चलाया गया। इसी कारण इस अभियोग का नाम अलीपुर षड्यंत्र रखा गया था। कन्हाई लाल दत्त के साथ-साथ उसके प्रेरक प्रोफ़ेसर चारु चन्द्र राय भी बन्दी बनाये गये थे। सब पर अभियोग चला किन्तु चारू चन्द्र राय को फ्रांसीसी सरकार की बस्ती का नागरिक होने के कारण रिहा कर दिया गया।
अलीपुर अभियोग में भी नरेन्द्र गोस्वामी नामक का एक व्यक्ति भी बन्दी बनाया गया था जिसने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया। उसके इस देशद्रोह से क्रान्तिकारियो के रहे-सहे प्रयत्नों पर पर पानी फिर जाने की आशंका होने लगी। यद्यपि नरेन्द्र के इस कुकृत्य की देशभक्त समुदाय द्वारा चारो ओर भर्त्सना होती रही किन्तु इससे अभियोग में तो किसी प्रकार की सहायता मिलने की संभावना थी ही नही। यहाँ तक कि अभियोग के दौरान ही एक दिन भरी अदालत में किसी अभियुक्त ने उसको लात तक मार दी थी। उसका परिणाम यह हुआ कि एक तो वह इन बन्दियो के सामने आने से सदा बचता रहा और दूसरे सरकार ने भी उसके लिए सुरक्षा की व्यवस्था कर दी। उसको दो सरकारी अंगरक्षक दिए गये।
अब जेल में ही कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र बसु ने इस देशद्रोही को सबक सिखाने की एक अदभुत योजना बना डाली। उन्होंने निश्चय किया कि नरेंद्र अपना ब्यान पूरा करे उससे पूर्व ही उसको इस संसार से प्रयाण कर लेना चाहिए। कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र की बुद्धि निरंतर कार्य कर रही थी। उन्होंने सबसे पहले जेल के वाडरो से घनिष्टता बढाई उन्हें बहुत हद तक प्रभावित कर लिया। उसके फलस्वरूप जेल के भीतर लाये जाने वाले कटहल- मछली के भीतर रखी दो पिस्तौल को प्राप्त करने में वो सफल हो गये। उसमे किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं हुई। वे पिस्तौल किन वाडरो द्वारा आयोजित किये गये और किसने बाहर से भेजे थी , इस तथ्य को बाह्य जगत कभी नहीं जान पाया।
सितम्बर माह की तिथि निकट आ गयी जिस तिथि को नरेन्द्र को अपना वक्तव्य देना निर्धारित किया गया था। नरेन्द्र नियमित रूप से प्रतिदिन सत्येन्द्र और कन्हाई लाल के पास मिलने के लिए आता था। 31 अगस्त 1909 के दिन भी वह अपने समय पर उनके पास आया। तभी सत्येन्द्र ने अपने सिरहाने रखी पिस्तौल से नरेन्द्र पर वार किया गोली उसके पैर में लगी किन्तु वह उससे गिरा नही। सत्येन्द्र ने तभी दूसरी गोली चलाई तब तक नरेन्द्र भागने लगा था। सत्येन्द्र और कन्हाई दोनों ने उसके निकट पहुचकर उसे गोलियों से छलनी कर दिया।

शहादत
कनाईलाल के फैसले में लिखा गया कि इसे अपील करने की इजाजत नहीं होगी। 10 नवम्बर, 1908 को कनाईलाल कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में फांसी के फंदे पर लटकर शहीद हो गए। जेल में उनका वजन बढ़ गया था।

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